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हाईकोर्ट का बड़ा फैसला! चेक बाउंस पर अब होगी कड़ी कार्रवाई Cheque Bounce

Cheque Bounce आधुनिक डिजिटल युग में न्याय प्रणाली को और अधिक सुलभ, पारदर्शी और तेज़ बनाने की दिशा में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। हाल ही में, इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक अभूतपूर्व फैसले ने चेक बाउंस मामलों की प्रक्रिया को आमूल-चूल बदल दिया है। इस फैसले के तहत, अब चेक बाउंस मामलों में डिजिटल माध्यमों से भेजे गए नोटिस को भी कानूनी मान्यता प्रदान की गई है।

डिजिटल क्रांति का न्यायिक प्रणाली में प्रवेश

नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के अंतर्गत, यदि किसी व्यक्ति द्वारा जारी किया गया चेक अपर्याप्त धनराशि या अन्य कारणों से बाउंस हो जाता है, तो चेक प्राप्तकर्ता को आरोपी को नोटिस भेजना अनिवार्य होता है। हालांकि, अब तक यह नोटिस केवल पारंपरिक माध्यमों, जैसे रजिस्टर्ड डाक या कूरियर के माध्यम से ही भेजा जा सकता था।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने नवीनतम फैसले में कहा है कि अब ईमेल, व्हाट्सएप, एसएमएस या अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से भेजे गए नोटिस भी कानूनी रूप से मान्य होंगे। यह फैसला सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 4 और 13, साथ ही भारतीय साक्ष्य अधिनियम (इंडियन एविडेंस एक्ट) की धारा 65बी के प्रावधानों के आधार पर लिया गया है।

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कानूनी आधार: न्यायालय का तर्क

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले के पीछे का मुख्य तर्क यह है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 में यह तो स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट किया गया है कि चेक बाउंस होने पर नोटिस भेजना अनिवार्य है, लेकिन इसमें यह कहीं भी नहीं बताया गया है कि नोटिस भेजने की विधि क्या होनी चाहिए।

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि जब तक डिजिटल माध्यमों से भेजे गए नोटिस आईटी एक्ट के नियमों और प्रावधानों का पालन करते हैं, तब तक उन्हें पूरी तरह से वैध और कानूनी माना जाएगा। इस फैसले को और अधिक मजबूती प्रदान करते हुए, उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट ने ‘राजेंद्र यादव बनाम उत्तर प्रदेश सरकार’ मामले में भी इसी प्रकार का निर्णय दिया था।

जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल के शब्दों में, “यदि कोई नोटिस डिजिटल माध्यम से भेजा जाता है, तो उसे पूर्णतः वैध माना जाएगा, क्योंकि कानून में इस संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं है।” यह विचार न्यायिक प्रणाली के आधुनिकीकरण और डिजिटलीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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डिजिटल नोटिस के लाभ: न्याय में तेजी

इस फैसले के परिणामस्वरूप चेक बाउंस मामलों में कई महत्वपूर्ण लाभ होने की संभावना है:

1. न्यायिक प्रक्रिया में त्वरित गति

पारंपरिक नोटिस भेजने की प्रक्रिया में कई बार हफ्तों या महीनों का समय लग जाता था। डिजिटल नोटिस की मान्यता से यह समय घटकर कुछ मिनटों या घंटों में सिमट जाएगा। इससे मामलों की सुनवाई जल्दी शुरू हो सकेगी और न्यायिक प्रक्रिया में तेजी आएगी।

2. नोटिस भेजने की सरलता

अब शिकायतकर्ताओं को पोस्ट ऑफिस या कूरियर सेवाओं पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं होगी। वे अपने मोबाइल फोन या कंप्यूटर का उपयोग करके तुरंत नोटिस भेज सकते हैं, जिससे समय और धन दोनों की बचत होगी।

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3. साक्ष्य की प्रामाणिकता में वृद्धि

डिजिटल नोटिस का एक बड़ा लाभ यह है कि इसका पूरा रिकॉर्ड सिस्टम में संग्रहित रहता है। ईमेल, व्हाट्सएप या अन्य डिजिटल माध्यमों से भेजे गए संदेश का समय, तिथि और प्राप्तकर्ता का विवरण स्वचालित रूप से दर्ज हो जाता है, जिससे धोखाधड़ी की संभावना काफी कम हो जाती है।

4. पारदर्शिता में वृद्धि

डिजिटल नोटिस की वजह से न्यायालय में साक्ष्य प्रस्तुत करना और भी सरल हो जाएगा। इससे मामलों में पारदर्शिता बढ़ेगी और न्यायिक प्रक्रिया और अधिक निष्पक्ष हो जाएगी।

मजिस्ट्रेट्स के लिए नए दिशा-निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में उत्तर प्रदेश के सभी मजिस्ट्रेट्स को विशेष निर्देश भी जारी किए हैं। इन निर्देशों के अनुसार, जब भी चेक बाउंस की शिकायत दर्ज की जाए, तो मामले से संबंधित समस्त जानकारी और डिजिटल रिकॉर्ड को सावधानीपूर्वक संरक्षित रखा जाना चाहिए।

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इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मामले की सुनवाई के दौरान कोई भी महत्वपूर्ण साक्ष्य या जानकारी न खो जाए। इससे न केवल धोखाधड़ी के मामलों में कमी आएगी, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया भी और अधिक मजबूत होगी।

डिजिटल नोटिस की प्रक्रिया

डिजिटल नोटिस भेजते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:

  1. प्राप्तकर्ता का सही डिजिटल पता: नोटिस भेजने से पहले यह सुनिश्चित करें कि आप सही ईमेल पते, मोबाइल नंबर या अन्य डिजिटल पहचान का उपयोग कर रहे हैं।
  2. स्पष्ट और विस्तृत जानकारी: नोटिस में चेक से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी, जैसे चेक नंबर, राशि, जारी करने की तिथि, बैंक का नाम और बाउंस होने का कारण शामिल होना चाहिए।
  3. समय सीमा का पालन: नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के अनुसार, चेक बाउंस होने के 30 दिनों के भीतर नोटिस भेजना अनिवार्य है। इस समय सीमा का पालन डिजिटल नोटिस के मामले में भी करना होगा।
  4. डिलीवरी का प्रमाण: जहां संभव हो, ईमेल या मैसेज का ‘रीड रिसीप्ट’ या ‘डिलीवरी कन्फर्मेशन’ प्राप्त करें, जिससे यह साबित किया जा सके कि नोटिस वास्तव में प्राप्तकर्ता तक पहुंचा है।

क्या आपके लिए यह फैसला फायदेमंद है?

यदि आप किसी चेक बाउंस मामले से जुड़े हैं, चाहे शिकायतकर्ता के रूप में या प्रतिवादी के रूप में, तो यह फैसला निश्चित रूप से आपके लिए महत्वपूर्ण है।

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शिकायतकर्ता के लिए, यह फैसला नोटिस भेजने की प्रक्रिया को सरल और त्वरित बनाता है। अब आपको आरोपी तक नोटिस पहुंचाने के लिए डाक या कूरियर सेवाओं के झंझट से मुक्ति मिल जाएगी। आप सीधे ईमेल, व्हाट्सएप या एसएमएस के माध्यम से नोटिस भेज सकते हैं, जो पूरी तरह से कानूनी और मान्य होगा।

प्रतिवादी के लिए, यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि आपको नोटिस प्राप्त करने के लिए अपने पुराने पते पर मौजूद रहने की आवश्यकता नहीं है। आप अपने डिजिटल माध्यमों पर नोटिस प्राप्त कर सकते हैं, जिससे आपके लिए भी प्रक्रिया सरल हो जाएगी।

 डिजिटल न्याय की ओर एक कदम

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला न्यायिक प्रणाली को आधुनिक और डिजिटल बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल चेक बाउंस मामलों को निपटाने में तेजी लाएगा, बल्कि अन्य न्यायिक प्रक्रियाओं के लिए भी एक मिसाल कायम करेगा।

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यह फैसला सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ अभियान के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य देश के विभिन्न क्षेत्रों में डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाना है। न्यायिक क्षेत्र में इस प्रकार के नवाचार से न्याय की पहुंच और अधिक सुलभ, त्वरित और प्रभावी होगी।

अंत में, यह कहा जा सकता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल चेक बाउंस मामलों में बल्कि संपूर्ण न्यायिक प्रणाली में एक नए युग की शुरुआत का संकेत है, जहां प्रौद्योगिकी और न्याय हाथ में हाथ मिलाकर चलेंगे।

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