UPI Fees Hike भारत में डिजिटल क्रांति की सबसे बड़ी सफलता की कहानी है यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI)। छोटे से गांव के पान की दुकान से लेकर महानगरों के मॉल्स तक, UPI ने देश के हर कोने में अपनी पहुंच बना ली है। नकदरहित अर्थव्यवस्था की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है। लेकिन अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि UPI के ‘निःशुल्क’ युग का अंत निकट आ गया है। आइए जानते हैं कि यह परिवर्तन क्यों हो रहा है और इसका आम नागरिकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
UPI का सफर: निःशुल्क से सशुल्क तक
UPI की शुरुआत 2016 में हुई थी और तब से इसने अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में, UPI के माध्यम से 131 लाख करोड़ रुपये से अधिक के लेनदेन हुए। इस सफलता का प्रमुख कारण रहा है इसका निःशुल्क और उपयोगकर्ता-मित्रवत होना। किसी भी बैंक खाते से कहीं भी, किसी भी समय, बिना किसी शुल्क के पैसे भेजना UPI की सबसे बड़ी विशेषता रही है।
लेकिन अब Google Pay, Paytm और PhonePe जैसी प्रमुख डिजिटल भुगतान कंपनियां कुछ प्रकार के लेनदेन पर शुल्क वसूलना शुरू कर रही हैं। Google Pay ने डेबिट और क्रेडिट कार्ड से जुड़े UPI लेनदेन पर 0.5% से 1% तक का शुल्क लागू किया है। इसी तरह, Paytm और PhonePe ने भी मोबाइल रिचार्ज, बिल भुगतान और कुछ अन्य सेवाओं पर ‘सुविधा शुल्क’ लेना आरंभ कर दिया है।
सरकारी सब्सिडी में कटौती: असली कारण
इस परिवर्तन का मुख्य कारण है सरकारी सब्सिडी में क्रमिक कटौती। अब तक, भारत सरकार ने 2,000 रुपये से कम के UPI लेनदेन पर सब्सिडी देकर इन्हें निःशुल्क बनाए रखा था। विशेष रूप से, व्यक्ति-से-व्यापारी (P2M) लेनदेन पर सरकार को प्रति वर्ष लगभग 12,000 करोड़ रुपये का बोझ उठाना पड़ता था।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि सब्सिडी में कटौती का क्रम निम्नानुसार है:
- 2023: 2,600 करोड़ रुपये
- 2024: 2,484 करोड़ रुपये
- 2025: मात्र 477 करोड़ रुपये (भारी कटौती)
यह स्पष्ट है कि 2025 तक सरकारी सब्सिडी में लगभग 80% की कटौती होगी। ऐसे में, डिजिटल भुगतान कंपनियों के पास अपने परिचालन खर्चों की भरपाई के लिए उपयोगकर्ताओं से शुल्क वसूलने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।
डिजिटल भुगतान कंपनियों की आर्थिक चुनौतियां
UPI लेनदेन पर ‘जीरो एमडीआर’ (मर्चेंट डिस्काउंट रेट) नीति के कारण, डिजिटल भुगतान कंपनियों को महत्वपूर्ण राजस्व हानि का सामना करना पड़ रहा है। इन कंपनियों का तर्क है कि वे लंबे समय से घाटे में चल रही हैं और अब जब सरकारी सहायता कम हो रही है, तो उन्हें अपने व्यवसाय को टिकाऊ बनाने के लिए नए राजस्व स्रोत खोजने की आवश्यकता है।
एक अनुमान के अनुसार, PhonePe और Google Pay जैसी कंपनियां प्रति वर्ष 1,500 से 2,000 करोड़ रुपये तक का नुकसान उठा रही हैं। ये कंपनियां अपने प्लेटफॉर्म को बनाए रखने, तकनीकी अपग्रेडेशन, सुरक्षा सुनिश्चित करने और ग्राहक सेवा प्रदान करने के लिए भारी निवेश करती हैं।
आम नागरिकों पर प्रभाव
आज एक औसत भारतीय अपने 60-80% भुगतान UPI के माध्यम से करता है। रोजमर्रा के खर्चे जैसे:
- दैनिक किराना खरीद
- मोबाइल रिचार्ज
- बिजली और पानी के बिल
- पेट्रोल-डीजल
- रेस्टोरेंट भुगतान
- ऑनलाइन शॉपिंग
- इंश्योरेंस प्रीमियम
- स्कूल/कॉलेज फीस
इन सभी लेनदेन पर शुल्क लगने से आम आदमी की जेब पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। विशेष रूप से, कम आय वाले वर्ग और छोटे व्यापारियों पर इसका अधिक प्रभाव हो सकता है।
एक उदाहरण के रूप में, यदि कोई व्यक्ति प्रतिमाह औसतन 20,000 रुपये का UPI लेनदेन करता है और उस पर 0.5% का शुल्क लगता है, तो उसे सालाना 1,200 रुपये अतिरिक्त देने होंगे।
छोटे व्यापारियों पर दोहरा प्रभाव
छोटे व्यापारियों और दुकानदारों पर इस परिवर्तन का दोहरा प्रभाव पड़ेगा। एक ओर, उन्हें ग्राहकों के UPI भुगतान पर अतिरिक्त शुल्क देना पड़ेगा, दूसरी ओर, वे स्वयं भी अपने आपूर्तिकर्ताओं को भुगतान करते समय इस शुल्क से प्रभावित होंगे।
इससे छोटे व्यवसायों की लागत बढ़ेगी, जिसे वे या तो अपने मार्जिन से चुकाएंगे या फिर ग्राहकों पर स्थानांतरित करेंगे। दोनों ही स्थितियों में, यह उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित कर सकता है।
क्या वापस लौटेगा नकद भुगतान का युग?
जब UPI पर शुल्क लगेगा, तो यह संभावना है कि कुछ उपयोगकर्ता नकद भुगतान की ओर वापस लौट सकते हैं। विशेष रूप से छोटे लेनदेन जैसे चाय, नाश्ता, दैनिक किराना खरीद आदि के लिए लोग नकद का उपयोग अधिक कर सकते हैं।
यह परिवर्तन नकदरहित अर्थव्यवस्था की दिशा में भारत की प्रगति को धीमा कर सकता है। हालांकि, यह संभावना कम है कि पूरी तरह से नकद युग वापस आएगा, क्योंकि UPI की सुविधा और सुरक्षा अभी भी इसे एक आकर्षक विकल्प बनाती है।
वैकल्पिक समाधान क्या हो सकते हैं?
इस चुनौती का सामना करने के लिए कुछ संभावित समाधान हो सकते हैं:
- चरणबद्ध शुल्क संरचना: सरकार एक निश्चित सीमा (जैसे 5,000 रुपये) तक के लेनदेन को निःशुल्क रख सकती है और उससे अधिक राशि पर न्यूनतम शुल्क लागू कर सकती है।
- प्रीमियम सेवाओं पर शुल्क: बुनियादी UPI लेनदेन निःशुल्क रखते हुए, अतिरिक्त सुविधाओं जैसे त्वरित रिफंड, उच्च लेनदेन सीमा, या विशेष सुरक्षा सुविधाओं पर शुल्क लगाया जा सकता है।
- विज्ञापन-आधारित मॉडल: डिजिटल भुगतान कंपनियां विज्ञापन, उपयोगकर्ता डेटा विश्लेषण और व्यापारियों के साथ साझेदारी से राजस्व उत्पन्न कर सकती हैं।
- नई तकनीकों का विकास: ब्लॉकचेन जैसी नई तकनीकें कम लागत पर भुगतान समाधान प्रदान कर सकती हैं।
UPI भारत की डिजिटल भुगतान क्रांति का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। सरकार और डिजिटल भुगतान कंपनियों के लिए चुनौती यह है कि वे एक ऐसा मॉडल विकसित करें जो आर्थिक रूप से टिकाऊ हो, लेकिन साथ ही आम नागरिकों पर अत्यधिक बोझ न डाले।
अंततः, UPI की सफलता इसकी पहुंच, सुविधा और किफायती होने पर निर्भर करती है। यदि शुल्क संरचना उचित और पारदर्शी रखी जाए, तो UPI भारत के डिजिटल भुगतान परिदृश्य में अपना प्रभुत्व बनाए रख सकती है।
आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार, नियामक संस्थाएं और डिजिटल भुगतान कंपनियां इस चुनौती का सामना कैसे करती हैं और क्या वे ऐसा संतुलन स्थापित कर पाते हैं जो सभी हितधारकों के लिए फायदेमंद हो।