LPG Price Hike नए वित्तीय वर्ष 2025-26 की शुरुआत में ही देश के करोड़ों परिवारों को महंगाई का एक और झटका लगा है। सरकार ने 8 अप्रैल 2025 से घरेलू एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में 50 रुपये की वृद्धि कर दी है। यह वृद्धि सभी श्रेणियों के उपभोक्ताओं के लिए समान रूप से लागू की गई है – चाहे वे सामान्य उपभोक्ता हों या फिर प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के अंतर्गत आने वाले लाभार्थी। इस कदम से देशभर में रसोई गैस पर होने वाला मासिक खर्च बढ़ गया है, जिससे घरेलू बजट पर सीधा प्रभाव पड़ा है।
राष्ट्रीय राजधानी में नए दाम
नई दिल्ली में 14.2 किलोग्राम वाले घरेलू एलपीजी सिलेंडर की कीमत 803 रुपये से बढ़कर अब 853 रुपये हो गई है। वहीं प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों के लिए भी कीमत 503 रुपये से बढ़कर 553 रुपये हो गई है। राजधानी क्षेत्र में रहने वाले परिवारों को अब रसोई गैस के लिए प्रति सिलेंडर 50 रुपये अधिक खर्च करने होंगे, जो महंगाई के इस दौर में उनके लिए अतिरिक्त बोझ है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के अन्य शहरों जैसे गुड़गांव, नोएडा और फरीदाबाद में भी कीमतें समान रूप से बढ़ाई गई हैं, जिससे इन क्षेत्रों में रहने वाले मध्यम वर्गीय परिवारों पर आर्थिक दबाव बढ़ गया है।
देश के प्रमुख महानगरों में एलपीजी के नए दाम
केवल दिल्ली ही नहीं, बल्कि देश के अन्य प्रमुख महानगरों में भी एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में एक समान रूप से 50 रुपये की वृद्धि की गई है। इससे पूरे भारत में रसोई गैस के लिए आम उपभोक्ताओं को अधिक भुगतान करना पड़ रहा है:
- मुंबई में घरेलू एलपीजी सिलेंडर की कीमत अब 852.50 रुपये है।
- कोलकाता में सिलेंडर 879 रुपये का हो गया है।
- चेन्नई में उपभोक्ताओं को अब एक सिलेंडर के लिए 868.50 रुपये देने होंगे।
वित्तीय राजधानी मुंबई में, जहां पहले से ही रहन-सहन की लागत अत्यधिक है, वहां एलपीजी की कीमतों में यह वृद्धि मध्यम वर्गीय परिवारों के मासिक बजट को असंतुलित कर रही है। कई परिवारों ने इस बढ़ोतरी पर चिंता व्यक्त की है, खासकर उन्होंने जो किराए के मकानों में रहते हैं और पहले से ही महंगाई से जूझ रहे हैं।
क्षेत्रीय विषमता: उत्तर भारत में स्थिति
उत्तर भारत के प्रमुख शहरों में भी घरेलू एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में समान वृद्धि देखी गई है, लेकिन कुछ शहरों में कीमतें राष्ट्रीय औसत से भी अधिक हैं:
- लखनऊ में एलपीजी सिलेंडर की कीमत 890.50 रुपये हो गई है।
- देहरादून में उपभोक्ताओं को अब 850.50 रुपये का भुगतान करना होगा।
- जयपुर में कीमत बढ़कर 856.50 रुपये हो गई है।
- शिमला में ठंडे पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण एलपीजी की मांग अधिक है, वहां कीमत 897.50 रुपये तक पहुंच गई है।
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों में, जहां परिवहन लागत अधिक है, वहां एलपीजी की कीमतें अन्य राज्यों की तुलना में अधिक हैं। इससे पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को दोहरा आर्थिक भार वहन करना पड़ रहा है।
पूर्वी और पश्चिमी भारत का परिदृश्य
पूर्वी भारत के राज्यों में एलपीजी की कीमतें देश के अन्य हिस्सों की तुलना में अधिक बढ़ी हैं, जिससे यहां रहने वाले लोगों के लिए स्थिति और भी चिंताजनक हो गई है:
- पटना में घरेलू एलपीजी सिलेंडर की कीमत अब 951 रुपये हो गई है, जो देश में सर्वाधिक कीमतों में से एक है।
- डिब्रूगढ़ (असम) में भी सिलेंडर 852 रुपये का हो गया है।
- रांची में कीमत 875 रुपये तक पहुंच गई है।
इसी प्रकार, पश्चिमी भारत में:
- गांधीनगर में एलपीजी सिलेंडर 878.50 रुपये का हो गया है।
- इंदौर में कीमत 881 रुपये हो गई है।
- अहमदाबाद में उपभोक्ताओं को 874 रुपये का भुगतान करना पड़ रहा है।
पूर्वोत्तर राज्यों में, जहां परिवहन और वितरण की लागत अधिक है, वहां एलपीजी सिलेंडर की कीमतें 900 रुपये के आसपास पहुंच गई हैं। इन क्षेत्रों में पहले से ही विकास की चुनौतियां हैं, और अब ईंधन की बढ़ती कीमतों ने स्थानीय अर्थव्यवस्था पर और दबाव डाल दिया है।
दक्षिण और सीमावर्ती क्षेत्रों की स्थिति
दक्षिण भारत के राज्यों और सीमावर्ती क्षेत्रों में एलपीजी सिलेंडर की कीमतें और भी अधिक हैं:
- विशाखापट्टनम में एलपीजी सिलेंडर अब 861 रुपये का हो गया है।
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में इसकी कीमत 929 रुपये है, जो द्वीपसमूह में रहने वाले लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती है।
देश के सबसे दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में स्थिति और भी गंभीर है। उत्तर-पश्चिम भारत के कारगिल में एलपीजी सिलेंडर की कीमत 985.50 रुपये तक पहुंच गई है, जो लगभग 1,000 रुपये के मनोवैज्ञानिक स्तर को छू रही है। यह दर्शाता है कि दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को ईंधन के लिए अत्यधिक कीमत चुकानी पड़ रही है।
मूल्य वृद्धि के पीछे के कारण
केंद्रीय तेल मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, एलपीजी की कीमतों में वृद्धि के पीछे कई कारण हैं:
- उत्पाद शुल्क में वृद्धि: सरकार ने एलपीजी पर लगने वाले उत्पाद शुल्क में वृद्धि की है, जिसका सीधा असर सिलेंडर की कीमतों पर पड़ा है।
- तेल कंपनियों का घाटा: सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को लगभग 43,000 करोड़ रुपये के घाटे की भरपाई करनी है, जिसके चलते कीमतों में बढ़ोतरी की गई है।
- अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव: वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता के कारण भी घरेलू एलपीजी की कीमतों पर प्रभाव पड़ रहा है।
- रुपये की विनिमय दर में गिरावट: भारतीय रुपये की विनिमय दर में गिरावट के कारण भी आयातित ईंधन की लागत बढ़ गई है।
सरकार हर दो से तीन सप्ताह में गैस की कीमतों की समीक्षा करती है, और इस बार समीक्षा के बाद यह निर्णय लिया गया। तेल कंपनियों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और रुपये की विनिमय दर में गिरावट के कारण कीमतों में वृद्धि अपरिहार्य थी।
उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों पर प्रभाव
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत, गरीब और ग्रामीण परिवारों को सब्सिडी के साथ एलपीजी सिलेंडर प्रदान किए जाते हैं। इस योजना का उद्देश्य स्वच्छ ईंधन तक पहुंच बढ़ाना और लकड़ी और कोयले के उपयोग से होने वाले प्रदूषण को कम करना है। लेकिन इस बार उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों के लिए भी 50 रुपये की वृद्धि की गई है, जो इन परिवारों की आर्थिक स्थिति को और चुनौतीपूर्ण बना देगी।
राजस्थान के एक ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली सुनीता देवी, जो उज्ज्वला योजना की लाभार्थी हैं, कहती हैं, “हमारे जैसे गरीब परिवारों के लिए हर 50 रुपये का महत्व होता है। अब मुझे अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए रखे गए पैसों से कटौती करनी पड़ेगी।”
उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों के लिए एलपीजी की बढ़ी हुई कीमतें उन्हें फिर से पारंपरिक ईंधन स्रोतों जैसे लकड़ी या उपले की ओर धकेल सकती हैं, जो न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है बल्कि महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है।
आम जनता पर प्रभाव
एलपीजी की कीमतों में यह वृद्धि मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग के परिवारों के लिए एक गंभीर आर्थिक चुनौती है। विशेष रूप से ऐसे समय में जब महंगाई पहले से ही चरम पर है और आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं, रसोई गैस की कीमतों में 50 रुपये की वृद्धि परिवारों के मासिक बजट को प्रभावित कर रही है।
दिल्ली में रहने वाले राजेश शर्मा, जो एक निजी कंपनी में काम करते हैं, कहते हैं, “पहले से ही महंगाई से जूझ रहे हैं। स्कूल फीस, किराया, बिजली बिल – सब कुछ बढ़ रहा है, और अब एलपीजी भी महंगी हो गई है। मासिक बचत करना मुश्किल होता जा रहा है।”
छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां आय का स्तर कम है, वहां एलपीजी की बढ़ी कीमतों ने परिवारों के सामने चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। कई परिवार अब वैकल्पिक ईंधन स्रोतों की ओर रुख कर रहे हैं या फिर एलपीजी का उपयोग सीमित कर रहे हैं।
उपभोक्ता संगठनों की प्रतिक्रिया
अखिल भारतीय उपभोक्ता संरक्षण समिति ने इस मूल्य वृद्धि की कड़ी आलोचना की है। समिति के अध्यक्ष का कहना है, “नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत में ही आम आदमी पर इस तरह का बोझ डालना अनुचित है। सरकार को पहले अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाना चाहिए था।”
विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी इस कदम की आलोचना की है और इसे वापस लेने की मांग की है। उनका तर्क है कि जब वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें स्थिर हैं, तो घरेलू एलपीजी की कीमतों में इतनी वृद्धि अनुचित है।
आगे की संभावनाएं
तेल मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, सरकार आने वाले समय में कीमतों की नियमित समीक्षा करती रहेगी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आने पर, घरेलू एलपीजी की कीमतों में भी कमी की जा सकती है।
हालांकि, वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि अल्पावधि में कीमतों में कमी की संभावना कम है। वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव और विनिमय दर में उतार-चढ़ाव के कारण ईंधन की कीमतें अ
सरकारी प्रतिक्रिया
स्थिर रह सकती हैं।
सरकारी प्रतिक्रिया
सरकारी प्रवक्ता के अनुसार, “एलपीजी की कीमतों में यह वृद्धि अपरिहार्य थी। सरकार तेल कंपनियों के घाटे को कम करने और अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने के लिए लगातार प्रयासरत है। हम उपभोक्ताओं के हितों का भी ध्यान रख रहे हैं और आवश्यकतानुसार समय-समय पर कीमतों में संशोधन किया जाएगा।”
वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकार वैश्विक बाजार की स्थिति की निरंतर निगरानी कर रही है और यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आती है, तो इसका लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाया जाएगा।
एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में 50 रुपये की वृद्धि ने देश भर के परिवारों के घरेलू बजट पर दबाव बढ़ा दिया है। विशेष रूप से निम्न और मध्यम वर्ग के परिवारों को इस महंगाई का सामना करना मुश्किल हो रहा है। हालांकि सरकार का कहना है कि यह वृद्धि आर्थिक स्थिरता के लिए आवश्यक थी, लेकिन उपभोक्ता संगठनों और आम जनता का मानना है कि इससे उनकी आर्थिक परेशानियां बढ़ गई हैं।
आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या सरकार अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति के अनुसार कीमतों में कमी करेगी या फिर उपभोक्ताओं को ही इस बढ़ी हुई कीमत का बोझ वहन करना पड़ेगा। अंततः, एलपीजी जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में संतुलन बनाए रखना सरकार के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसमें उपभोक्ता हितों और आर्थिक स्थिरता के बीच सामंजस्य बिठाना होगा।