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पेट्रोल-डीजल के दाम में गिरावट, गैस सिलेंडर पर ₹200 की राहत Check Price Update

Check Price Update महंगाई की मार झेल रहे आम नागरिकों के लिए पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतें सीधे तौर पर उनके दैनिक जीवन और घरेलू बजट को प्रभावित करती हैं। हाल के महीनों में इन आवश्यक ईंधनों की कीमतों में कुछ बदलाव देखने को मिले हैं, जिन्हें सरकार द्वारा राहत के रूप में प्रस्तुत किया गया है। लेकिन क्या ये कटौतियां वास्तव में जनता के लिए फायदेमंद साबित हुई हैं? आइए इस पूरे मुद्दे का विस्तार से विश्लेषण करें।

पेट्रोल और डीजल की कीमतों में हालिया बदलाव

मार्च 2024 में तेल विपणन कंपनियों ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों में ₹2 प्रति लीटर की कटौती की घोषणा की। यह कदम काफी लंबे समय के बाद उठाया गया था। इससे पहले लगभग 28 महीनों के अंतराल में, यानी मई 2022 में, ईंधन कीमतों में अंतिम बार बदलाव किया गया था। उस समय केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क में ₹8 प्रति लीटर और डीजल पर ₹6 प्रति लीटर की कटौती की थी।

हालांकि, वर्तमान में की गई ₹2 प्रति लीटर की कटौती की तुलना पिछली कटौती से करें, तो यह काफी कम है। महंगाई दर और आम नागरिकों की क्रय शक्ति को देखते हुए, यह कटौती मामूली ही मानी जाएगी।

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प्रमुख शहरों में पेट्रोल-डीजल की वर्तमान कीमतें

कीमतों में कटौती के बावजूद, देश के प्रमुख महानगरों में ईंधन की कीमतें अभी भी काफी अधिक हैं:

  • राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पेट्रोल ₹96.72 प्रति लीटर और डीजल ₹89.62 प्रति लीटर मिल रहा है।
  • आर्थिक राजधानी मुंबई में पेट्रोल के लिए ₹106.31 प्रति लीटर और डीजल के लिए ₹94.27 प्रति लीटर चुकाना पड़ता है।
  • कोलकाता में पेट्रोल ₹106.03 प्रति लीटर और डीजल ₹92.76 प्रति लीटर है।
  • चेन्नई में पेट्रोल ₹102.63 प्रति लीटर और डीजल ₹94.24 प्रति लीटर बिक रहा है।
  • बेंगलुरु में पेट्रोल ₹101.94 प्रति लीटर और डीजल ₹87.89 प्रति लीटर की दर से उपलब्ध है।

इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों में पेट्रोल की कीमत अभी भी ₹100 प्रति लीटर से अधिक है, जो आम आदमी के लिए बोझ बना हुआ है।

रसोई गैस (एलपीजी) की कीमतों में राहत

घरेलू एलपीजी गैस सिलेंडर के मामले में, अगस्त 2023 में सरकार ने 14.2 किलोग्राम वाले घरेलू सिलेंडर की कीमत में ₹200 की कटौती की थी। यह निर्णय विशेष रूप से घरेलू महिलाओं और गृहणियों के लिए राहत भरा था। वर्तमान में, 14.2 किलोग्राम वाले घरेलू गैस सिलेंडर की कीमत दिल्ली में ₹803 और मुंबई में ₹802.50 है।

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इसके अतिरिक्त, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों के लिए प्रति सिलेंडर ₹300 की सब्सिडी एक वर्ष के लिए बढ़ा दी गई है। यह निर्णय गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए अतिरिक्त राहत प्रदान करता है, जिससे स्वच्छ ईंधन का उपयोग करना उनके लिए अधिक किफायती बन सके।

पेट्रोलियम कंपनियों की वित्तीय स्थिति

वर्तमान परिदृश्य में, सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियां पेट्रोल पर ₹6 प्रति लीटर और डीजल पर ₹3 प्रति लीटर का नुकसान उठा रही हैं। यह स्थिति चिंताजनक है क्योंकि इसका सीधा अर्थ है कि भविष्य में कीमतें पुनः बढ़ सकती हैं।

तेल कंपनियों का यह नुकसान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों, विनिमय दर में उतार-चढ़ाव और अन्य कारकों के कारण हो रहा है। इन कंपनियों की वित्तीय स्थिति का सीधा प्रभाव उनके निवेश, विस्तार योजनाओं और अंततः उपभोक्ताओं पर पड़ता है।

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राहत की वास्तविकता: एक विश्लेषण

एलपीजी गैस सिलेंडर पर राहत

एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमत में ₹200 की कटौती और उज्ज्वला योजना के तहत ₹300 की सब्सिडी निस्संदेह एक सार्थक राहत है। इससे विशेष रूप से निम्न और मध्यम वर्ग के परिवारों को लाभ मिला है। यह कदम घरेलू खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने में भी सहायक है।

हालांकि, इसे लंबे समय तक जारी रखने की आवश्यकता है, क्योंकि कई परिवारों के लिए रसोई गैस अभी भी महंगी है, विशेषकर जब दैनिक मजदूरों और असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों की आय अनिश्चित है।

पेट्रोल और डीजल में मामूली कटौती

पेट्रोल और डीजल की कीमतों में ₹2 प्रति लीटर की कटौती को बड़ी राहत नहीं माना जा सकता। आम नागरिकों के लिए, यह कटौती काफी कम है और सार्थक बचत नहीं करा पाती।

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उदाहरण के लिए, एक मध्यम वर्गीय परिवार जो मासिक रूप से 20 लीटर पेट्रोल का उपयोग करता है, उसे केवल ₹40 की मासिक बचत होगी। इसी तरह, ऑटो-रिक्शा या टैक्सी चालकों के लिए, जिनका रोजगार ईंधन की कीमतों पर निर्भर करता है, यह कटौती पर्याप्त नहीं है।

ईंधन कीमतों पर भविष्य के प्रभाव

ईंधन की कीमतों पर कई कारकों का प्रभाव पड़ता है:

1. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें

वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें भू-राजनीतिक तनाव, उत्पादन कटौती, मांग-आपूर्ति के संतुलन और अन्य कारकों से प्रभावित होती हैं। इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे वर्तमान तनाव भी कीमतों को प्रभावित कर रहे हैं।

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2. रुपये की विनिमय दर

भारतीय रुपये के मूल्य में उतार-चढ़ाव का सीधा प्रभाव तेल आयात की लागत पर पड़ता है। रुपये के कमजोर होने पर आयात महंगा हो जाता है, जिससे घरेलू कीमतें बढ़ती हैं।

3. सरकारी कर नीति

पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगाए गए कर और शुल्क अंतिम उपभोक्ता कीमतों का एक बड़ा हिस्सा होते हैं। कर नीति में कोई भी बदलाव कीमतों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है।

4. पर्यावरणीय नियम और वैकल्पिक ईंधन

बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण, स्वच्छ ईंधन और ग्रीन टेक्नोलॉजी पर जोर दिया जा रहा है। BS-VI मानकों और इलेक्ट्रिक वाहनों के बढ़ते चलन से पारंपरिक ईंधन की मांग पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।

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आम आदमी पर प्रभाव और आगे की राह

ईंधन की बढ़ती कीमतों का असर केवल वाहन चालकों तक ही सीमित नहीं है। इसका सीधा प्रभाव परिवहन लागत, आवश्यक वस्तुओं की कीमतों और समग्र महंगाई दर पर पड़ता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, मध्यम वर्गीय परिवारों के बजट का लगभग 15-20% हिस्सा ईंधन और परिवहन पर खर्च होता है।

आगे की राह के लिए, सरकार को निम्न उपायों पर विचार करना चाहिए:

  1. कर प्रणाली का पुनर्गठन: पेट्रोलियम उत्पादों पर जीएसटी के दायरे में लाकर कर संरचना को अधिक पारदर्शी और तर्कसंगत बनाया जा सकता है।
  2. सार्वजनिक परिवहन का विस्तार: बेहतर और किफायती सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था से निजी वाहनों पर निर्भरता कम हो सकती है।
  3. वैकल्पिक ईंधन को बढ़ावा: बायोफ्यूल, सीएनजी, एलएनजी और इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन देकर पारंपरिक ईंधनों पर दबाव कम किया जा सकता है।
  4. नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश: सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्रोतों पर निवेश बढ़ाकर जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम की जा सकती है।

हालांकि सरकार ने पेट्रोल, डीजल और एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमतों में कटौती की है, लेकिन यह राहत आंशिक ही है। एलपीजी गैस सिलेंडर में ₹200 की कटौती और उज्ज्वला योजना के तहत सब्सिडी से घरेलू उपभोक्ताओं को कुछ राहत मिली है, लेकिन पेट्रोल और डीजल में ₹2 प्रति लीटर की मामूली कटौती से आम जनता की परेशानियां कम होने की संभावना नहीं है।

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भविष्य में, ईंधन कीमतों को नियंत्रित करने के लिए दीर्घकालिक और टिकाऊ समाधानों की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार, उद्योग और नागरिकों को मिलकर काम करना होगा ताकि ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित हो सके।

 

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