cases of check bounce डिजिटल भुगतान के इस युग में भी चेक भारतीय वित्तीय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बने हुए हैं। विशेषकर व्यापारिक लेनदेन, किराए की अदायगी, और कई सरकारी भुगतानों में चेक का उपयोग अभी भी व्यापक रूप से किया जाता है।
हालांकि, चेक से जुड़े नियमों और कानूनी प्रावधानों की अनभिज्ञता के कारण कई लोग मुश्किलों का सामना करते हैं। इसी संदर्भ में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जो बैंक विलय के बाद अमान्य हुए चेक के बाउंस होने पर कानूनी कार्रवाई से संबंधित है।
चेक बाउंस क्या है?
चेक बाउंस तब होता है जब किसी चेक का भुगतान विभिन्न कारणों से बैंक द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे:
- खाते में पर्याप्त धनराशि न होना
- चेक पर हस्ताक्षर का मेल न होना
- चेक की तारीख का समाप्त हो जाना
- चेक में कोई ओवरराइटिंग या काट-छांट होना
- चेक का अमान्य होना
इनमें से किसी भी कारण से चेक बाउंस होने पर, सामान्यतः भारतीय नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NI Act) की धारा 138 के तहत कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
चेक बाउंस पर बैंक की प्रक्रिया
जब किसी व्यक्ति या संस्था का चेक बाउंस होता है, तो बैंक एक निश्चित प्रक्रिया का पालन करता है:
नोटिस का प्रेषण
बैंक चेक बाउंस होने के बाद संबंधित व्यक्ति को एक नोटिस भेजता है, जिसमें चेक बाउंस होने के कारण और उसके निवारण के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं, इसकी जानकारी दी जाती है। यह नोटिस आमतौर पर तीन महीने की अवधि के लिए भेजा जाता है।
प्रतिक्रिया का इंतजार
नोटिस भेजने के बाद, बैंक संबंधित व्यक्ति से प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करता है। यदि व्यक्ति निर्धारित समय के भीतर चेक की राशि का भुगतान कर देता है या अन्य किसी उचित कारण से बैंक संतुष्ट हो जाता है, तो आगे की कार्रवाई नहीं की जाती।
न्यायिक कार्रवाई
यदि व्यक्ति तीन महीने के भीतर नोटिस का जवाब नहीं देता है या बैंक की संतुष्टि के अनुसार भुगतान नहीं करता है, तो बैंक अदालत में NI Act की धारा 138 के तहत मामला दर्ज कर सकता है। इस कानूनी कार्रवाई में दोषी पाए जाने पर व्यक्ति को जुर्माना या जेल की सजा का सामना करना पड़ सकता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चेक बाउंस से जुड़े एक मामले में एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। न्यायमूर्ति अरुण सिंह देशवाल के नेतृत्व में हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि जिन बैंकों का किसी अन्य बैंक में विलय हो चुका है, उनके पुराने चेक अगर अमान्य होने के कारण बाउंस हो जाते हैं, तो ऐसे मामलों में एनआई एक्ट (NI Act) की धारा 138 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।
मामले का विवरण
यह मामला बांदा जिले की अर्चना सिंह गौतम से संबंधित था। याचिकाकर्ता ने एक चेक का उपयोग किया था जो इंडियन बैंक में विलय से पहले जारी किया गया था। बैंक ने इस चेक को अमान्य बताते हुए लौटा दिया, जिसके बाद विपक्षी पक्ष ने याचिकाकर्ता के खिलाफ NI Act की धारा 138 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया।
इस मामले में याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया, जिसके बाद कोर्ट ने चेक बाउंस के इस मामले में राहत देते हुए मुकदमे को अमान्य करार दिया।
कोर्ट के निर्णय का विश्लेषण
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला:
1. बैंक विलय के बाद चेक की वैधता
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब दो बैंकों का विलय होता है, तो विलय से पहले जारी किए गए चेक एक निश्चित अवधि तक ही वैध रहते हैं। इस अवधि के बाद, पुराने बैंक के चेक अमान्य हो जाते हैं और उनका उपयोग नहीं किया जा सकता।
2. अमान्य चेक पर धारा 138 का प्रावधान लागू नहीं
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि NI Act की धारा 138 के तहत केस दर्ज करने के लिए चेक का वैध (Valid) होना आवश्यक है। विलय के बाद अमान्य चेक के बाउंस होने पर मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता।
3. अनभिज्ञता के कारण राहत
कोर्ट ने यह भी माना कि कई बार ग्राहक अनजाने में पुराने और अमान्य चेक का उपयोग कर देते हैं। ऐसी स्थिति में, उन्हें कानूनी कार्रवाई से राहत मिलनी चाहिए।
इलाहाबाद बैंक और इंडियन बैंक का विलय: एक उदाहरण
इस निर्णय को समझने के लिए इलाहाबाद बैंक और इंडियन बैंक के विलय का उदाहरण उपयोगी है:
- इलाहाबाद बैंक का 1 अप्रैल 2020 को इंडियन बैंक में विलय हुआ था।
- विलय के बाद, इलाहाबाद बैंक के चेक 30 सितंबर 2021 तक वैध थे।
- इस तिथि के बाद, इलाहाबाद बैंक के पुराने चेक अमान्य हो गए।
- यदि कोई ग्राहक 30 सितंबर 2021 के बाद इलाहाबाद बैंक के चेक का उपयोग करता है और बैंक उसे अस्वीकार कर देता है, तो इसे चेक बाउंस का अपराध नहीं माना जाएगा।
फैसले का महत्व और प्रभाव
इस फैसले का व्यापक प्रभाव पड़ेगा, विशेष रूप से भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में जहां पिछले कुछ वर्षों में कई बैंक विलय हुए हैं:
1. ग्राहकों को मिलेगी राहत
यह फैसला उन ग्राहकों के लिए राहत भरा है जो अनजाने में अमान्य चेक का उपयोग कर देते हैं। अब वे NI Act की धारा 138 के तहत कानूनी कार्रवाई से बच सकेंगे।
2. बैंकों की जिम्मेदारी में वृद्धि
इस फैसले के बाद, बैंकों की यह जिम्मेदारी बढ़ जाएगी कि वे अपने ग्राहकों को बैंक विलय और चेक की वैधता के बारे में समय पर सूचित करें।
3. जागरूकता की आवश्यकता
यह फैसला इस बात पर जोर देता है कि ग्राहकों को अपने बैंक के नियमों और प्रक्रियाओं के बारे में जागरूक रहना चाहिए, विशेष रूप से बैंक विलय के मामले में।
ग्राहकों के लिए सावधानियां और सुझाव
इस फैसले के प्रकाश में, ग्राहकों को निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए:
1. चेकबुक को समय पर अपडेट करें
बैंक विलय के बाद, ग्राहकों को तुरंत अपनी पुरानी चेकबुक को नई चेकबुक से बदलवा लेना चाहिए।
2. बैंक के नियमों की जानकारी रखें
ग्राहकों को अपने बैंक के नए नियमों और प्रक्रियाओं के बारे में अपडेट रहना चाहिए, विशेष रूप से विलय के मामले में।
3. चेक की वैधता जांचें
भुगतान के लिए चेक का उपयोग करने से पहले, ग्राहकों को चेक की वैधता की जांच करनी चाहिए।
4. डिजिटल भुगतान विकल्पों का उपयोग करें
जहां संभव हो, ग्राहकों को NEFT, RTGS, UPI जैसे डिजिटल भुगतान विकल्पों का उपयोग करना चाहिए, जो अधिक सुरक्षित और त्वरित हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला बैंक विलय के बाद अमान्य चेक के उपयोग से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय है। यह फैसला न केवल ग्राहकों को राहत प्रदान करता है, बल्कि बैंकों को भी अपनी प्रक्रियाओं और संचार में सुधार करने का निर्देश देता है।